प्यारे साथियों,
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का हिस्सा बनने के लिए बधाई। आपमे से बहुत साथी अपने परिवार व समाज से लड़कर-भिड़कर यहाँ पहुँचे होंगे ये मै जानता हूँ और आपके संघर्ष को सलाम करता हूँ। लेकिन आपका संघर्ष अभी समाप्त नही हुआ है, इसे बचाये रखियेगा,क्यूंकि असल लड़ाई तो आपको अब लड़नी है।
विश्वविद्यालय हमपर बेहद ही चमत्कारिक असर डालता है और बहुत बार हमारे अंदर की रचनात्मकता को लील जाता है। कैंपस की भव्यता हमारे अंदर नकारात्मता को बढ़वा देती है जिसके सामने खुद को टिकाये रखना एक चुनौती बन जाती है। कब एक वैज्ञानिक सोच वाला छात्र दकियानूसी विचारधारा के लपेटे मे आ जाता है, पता नही चल पाता। कक्षा मे शिक्षकों की अनुपस्थिति,जातीय भेद-भाव, अलग सोंच वालो को जगह ना मिल पाना, हर स्तर पर चापलूसों की लंठई ,समय पर सिलेब्स पूरा न होना इत्यादि आपके आत्मविश्वास को हर वक़्त कमजोर करेगा।
वर्तमान समय आपके लिए और ज्यादा मुश्किलों भरा साबित होने वाला है। इस निजाम मे प्यार करने पर धारा 144 लागू है। अपने हक की आवाज उठाने पर पुलिसिया कार्रवाई होती है और राजनितिक सक्रियता तो आप भूल ही जाएँ। जब भी कुछ व्यवस्था के खिलाफ करने जाओगे तो आपके सामने संस्कार व संस्कृति की दीवारें खरी की जायेगी, आवाज उठाने पर डराया जायेगा आपको।
लेकिन जब भी डर लगे तो रवीन्द्र नाथ टैगोर की कविता "वेयर द माइंड इज विदाउट फियर", पढ़ना, हिम्मत मिलेगी। जब भी दोराहे पर पहुँचो और रास्ता चुनने मे मुश्किल महसूस हो तो रोबर्ट फ्रॉस्ट की कविता "द रोड हैज नॉट बिन टेकेन" पढ़ना, चुनाव करना आसान हो जायेगा।
सीनियर होने के नाते मै कहूँगा आपसे की आप सारे बंदिसों को तोड़ कर प्यार करना,अपनी प्रेमिका के संग बिना किसी से डरे स्वछंद विश्वविद्यालय की हर सड़क पर घूमना, गंगा घाट जाना,नौका विहार करना, गंगा मे पैर डाल घंटो बाते करना,अस्सी पर मौजूद दादा की चाय दूकान की चाय पिलाना,आपको वहाँ पर भक्ति काल से मोदी काल तक कि कहानियां मिल जाएंगी और बीच मे कुछ 'लाल सलाम' वाले देश से आपको मिलवाते रहेंगे, आगे पहलवान की लस्सी बड़ी लजीज होती है और वही सामने विश्वप्रसिद्ध केशव पान भंडार की दिव्य गुलकंद वाला पान भी खाना, ये सब करना क्योंकि वर्तमान सामाजिक ढांचे मे प्यार भी संघर्ष है और ये आपको बताएंगी की अभी आप जिन्दा हैं।
साथियों, हम जिस समाज से आते हैं वहां सफलता का मतलब एक क्लर्क की नौकरी होती है लेकिन आप अपने लिए बड़े लक्ष्य तय करना,खूब पढ़ना, गांधी,अम्बेडकर,फूले,भगत सिंह, नेहरू,पटेल,गोलवालकर,जिन्ना से शुरू कर ची ग्वेरा,फिदेल कास्त्रो,मंडेला,मार्टिन लूथर,कार्ल मार्क्स,लेनिन,रूसो,पाश,आइंस्टीन, चारु मजूमदार, स्टीफेन हॉकिन्स, जंगल संथाल, सर्वेश्वर दयाल,धूमिल,मुक्तिबोध,गोरखनाथ,लोर्का,महाश्वेता देवी, इत्यादि सब को पढ़ना,कुछ नया खोजना,रचना और खो जाना।
मोहनजोदड़ो के इतिहास से चलते हुए मेसोपोटामिया तक पहुँच जाना और हाँ बीच मे बेबिलोनिया की कराहती हुई सभ्यता पर भी मरहम लगा देना। कान्हा के वनो से लेकर सवाना के जंगलो तक की खाक छानना । बनारस के जुलाहों का दर्द बाटना, जानने की कोशिश करना की क्यों पलायन करते हैं बिहारी मजदूर, महाराष्ट्र मे आत्महत्या के मुहाने पर खड़े किसानो को हिम्मत देना,लखनऊ के नवाबों से भले ना मिलो लेकिन कानपुर के कामगारों के दर्द को जरूर महसूस करना, बंगाल के बंद पड़े मीलों के दरवाजे पर बैठे दरबान से उस कवि का पता जरूर पूछ लेना जिसने लिखा है की "अब क्यूँ बंगाल नही आते बिहारी मजदूर"? चले जाना 1984 के दंगा पीड़ितों के घर और अगर बीच रास्ते में मुजफ्फरनगर, मथुड़ा, भिवंडी, हाशिमपुरा, मुम्बई, मुजफ्फरपुर में गोधरा टहलता हुआ मिले तो पूछ लेना अपने हीं मुल्क में विस्थापित जिंदगी जीने का दर्द! हो सके तो इस पारंपरिक समाजिक ढाँचे के खिलाफ संघर्षरत महिलाओं से मिल आना। कुछ गोबर पाथती,कुछ परिवार की गाड़ी को खिचतीं, हाँथ मे बंदूक लिए, स्याही से दुनिया रचती, हुक्ममरानो के खिलाफ आवाज उठातीं, फूटपाथ पर दातुन बेचतीं,घरो में,सड़को पर, मणिपुर के सुदूर गांव से लेकर बीहड़ो तक क्रांति का अलख जगाये मिलेंगी, उनके हाँथ की बनी रोटी खाना,सम्मान मे नतमस्तक हो जाना और हो सके तो कुछ देर उनसे लिपट कर रो लेना। ये सब करना क्योंकि ऐसा कर आप जिंदगी के दर्द को महसूस करेंगे,सामाजिक ठहराव को गतिशील बनाएंगे,सामाजिक व आर्थिक भेदभाव को समझ उसके खिलाफ आवाज उठाएंगे और अपने धर्म व जाती से परे मानवता की लड़ाई लड़ेंगे। जो शिक्षा समाज व सरकार से कड़े सवाल पूछने को प्रेरित ना करे,उसमे बदलाव की बात ना करे,वो शिक्षा बेकार है।
आखिर मे एक प्रमुख बात ये की पूरे सफर मे आप ये कभी मत भूलना की देश के गरीब,मजदूर के टैक्स का पैसा आपकी पढा
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